का धरिला परदेश,Ka Dharila Paradesh
का धरिला परदेश, सजणा
का धरिला परदेश ?
श्रावण वैरी बरसे झिरमिर
चैन पडेना जीवा क्षणभर
जाऊ कोठे, राहू कैसी,
घेऊ जोगिणवेष ?
रंग न उरला गाली ओठी
भरती आसू काजळकाठी
शृंगाराचा साज उतरला,
मुक्त विखुरले केश
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