स्वार्थी पसारा सारा जगि,Swarthi Pasara Sara Jagi
स्वार्थी पसारा सारा जगि या ।
रवि चंद्र तारा ।
उडति त्या अमरा ॥
घनदाट अंधार पसरे निराशा ।
झुंजार वारा न जीवा निवारा ॥
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