लागी कलेजवाँ कटार ।
सावरियाँसे नयना हो गये चार ।
हाय राम ॥
बूँद ना गिरा एक लहू का
कछूँ ना रही निसानी
मन घायल पर तन पे छायी
मिठी टीस सुहानी
सखी री मैं तो सुद्ध-बुद्ध बैठी बिसार ॥
प्रीत की रीत सखी ना जानू
जीत हुई या हार ना मानू
जियरा करे इकरार अब मोर ॥
सावरियाँसे नयना हो गये चार ।
हाय राम ॥
बूँद ना गिरा एक लहू का
कछूँ ना रही निसानी
मन घायल पर तन पे छायी
मिठी टीस सुहानी
सखी री मैं तो सुद्ध-बुद्ध बैठी बिसार ॥
प्रीत की रीत सखी ना जानू
जीत हुई या हार ना मानू
जियरा करे इकरार अब मोर ॥
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