घेई छंद मकरंद,Ghei Chand Makarand
घेई छंद, मकरंद, प्रिय हा मिलिंद
मधुसेवनानंद स्वच्छंद, हा धुंद
मिटता कमलदल होई बंदी भृंग;
तरि सोडिना, ध्यास, गुंजनात दंग
बिसतंतू मृदु होति जणु व्रजबंध
स्वरब्रम्ह आनंद ! स्वर हो सुगंध
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