सखि मुखचंद्र भ्रांत,Sakhi Mukhachandra Bhrant
सखि मुखचंद्र भ्रांत न करो मनासी ।
खर पाप तेंही वचनांहि वमाया ॥
कुवचा विधाता शिकवील कैसा ।
विधुकिरणिं तमभाव होईल कधीं काय ॥
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