सदय किती कोमलमति,Saday Kiti Komalmati
सदय किती कोमलमति रेवती ती ।
शोभे ही काय तिला निष्ठुरा कृती ॥
कानिं कुणीं विष वमिलें मानुनी खरें ।
कुपित होय भेट न घे प्रेम सांडिती ॥
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