भरे कांपरे भ्रम दृष्टि,Bhare Kapare Bhram Drushti
' भरे कांपरे, भ्रम दृष्टि ही, जीभहि गेलि सुकोनी ।
दीक्षितरायें लाज राखिली संकट तें टाळोनी ।
आशा लग्नाची । झाली प्रबल पुन्हां अमुची ।
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