दैव किती अविचारी,Daiv Kiti Avichari
दैव किती अविचारी
उधो ! जीवनगति ही न्यारी !
शुभ्र वर्ण बगळ्यास दिला तू
कोकिळतनु अंधारी;
कृष्णलोचने सुंदर हरिणे
वनि वनि भ्रमति बिचारी !
मूर्ख भोगितो राजवैभवा
पंडित फिरत भिकारी;
सूरदास विनवितो प्रभूला
क्षणक्षण हो जडभारी !
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