जाण जरि शत्रूला जामात,Jaan Jari Shatrula Jamat
जाण जरि शत्रूला, जामात नेमिला ।
वंशतरु जाळिला मीच माझा ॥
देवयानी मला, पुत्र जणु एकला ।
काव्यरस जन्मला, गीतराजा ॥
अभिमान हा दिसे, तापसाला पिसें ।
जीव परि तो असे, आप्तकाजा ॥
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment