धूलियता पदिं तुझ्या,Dhuliyata Padi Tujhya
धूलियता पदिं तुझ्या पापनाश या जनांत ॥
नाहि दुजी कांहि वासना । ठाव चरणि विभव मजसि ।
दैवहता हीच भावना । दैव दिसलि सदय रमणी ।
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