दीन पतित अन्यायी,Deen Patit Anyayi
दीन पतित अन्यायी ।
शरण आले विठाबाई ॥
मी तो यातिहीन ।
न कळे काही आचरण ॥
मज अधिकार नाही ।
भेट देई विठाबाई ।
ठाव देई चरणापाशी ।
तुझी कान्होपात्रा दासी ॥
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