प्रणतनाथ रक्षि कान्त,Pranatnath Rakshi Kant
प्रणतनाथ ! रक्षि कान्त ।
करि तदीय असुख शांत ॥
अशुभा ज्या योजि दैव ।
पतिलागी, त्या सदैव ।
परिणमवी मंगलात ॥
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment